सत्ता सच्चिदानन्दमय है
सत्ता सच्चिदानन्दमय है,
असत-निरोधी स्वतः ही,
सच्चिदानन्द का परिपोषक है जो वही है धर्म
धर्म मूर्त्त होता है आदर्श में
आदर्श में दीक्षा लाती है अनुराग
अनुराग लाता है वृत्ति-नियंत्रण
वृत्ति-नियंत्रण लाता है धृति
धृति लाती है सहानुभूति
सहानुभूति लाती है संहति
संहति से आती है शक्ति
शक्ति लाती है संवर्द्धना ;
और, यह धृति लाती है प्रणिधान
प्रणिधान से ही आती है समाधि,
और, समाधि से ही आता है कैवल्य --
तृष्णा का एकान्त निर्वाण
महाचेतनसमुत्थान !
--: श्री श्री ठाकुर
पूज्यनीय बबादा के आशीर्वाद से इस महान वाणी पर मैंने अपनी आत्म अनुभूति लिखी है.
ReplyDelete